आज फिर तारिक है।

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कोर्ट के वकीलो के काले लिबाज मे, कुछ तो काला जरूर है वरना, इतनी भी कमजोर नही हमारी न्याय प्रणाली। इतनी भी लचीली नही हमारी न्याय प्रणाली की इतनी तारीख पर तारीख दे। इन काले कोर्ट पहने वकीलो को न्याय के लिए कम, अन्याय के साथ खड़े देखा है बहुत। बैंक से लिए कर्ज को अगर किसान चुकाना भी चाहे तो मन मेला लिये साथ वकील खड़ा मिलता । दावा कैसे लंबा चले यही आरजू पाले बैठा है। गरीब को न्याय दिलाने का भरोसा देकर खिलवाड गरीबो के जज्बातो से करता । मानो शर्म हया किसी कोटे पर बेचकर दलाली