1.उसने कहा,"हृदय में जब पीड़ा उठे और आँसू सूख जाएँ..तब देखना..कविता बनेगी..।ऐसे लिखने बैठोगी.. तो नहीं लिख पाओगी..।तो अपने जीवन में भाव उत्पन्न करो..।पीड़ा लाओ..।आक्रोश जगाओ..।"मैंने पूछा,कैसे..?वह बोला,बह्मांड में..किसी के भी.. प्रेम में पड़ जाओ..पीड़ा स्वयं ही समझ आ जाएगी।आक्रोश स्वयं ही उत्पन्न हो जाएगा ।मेरे पास... अब कोई... प्रश्न ही नहीं बचा था।शायद...मैं भयभीत थी,प्रेम से..आक्रोश से... पीड़ा से...2.तुम अपने प्रेम के उन्माद से,क्या सम्भल पाओगे? मैं तुम्हें ना मिलूँ, दैहिक रुप सेक्या तब भी मुझसे प्रेम कर पाओगे? मेरा समर्पण तो ऐसा ही रहा सदा सेक्या मुझमें समर्पित ऐसे हो पाओगे?3.मैं जानती हूं मेरा ये निस्वार्थ प्रेम तुम्हारी