श्री दधीचि जी

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परोपकाराय सतां विभूतयः। एक बार की बात है, देवराज इन्द्र अपनी सभा में बैठे थे। उन्हें अभिमान हो आया कि हम तीनों लोकों के स्वामी हैं। ब्राह्मण हमें यज्ञमें आहुति देते हैं, देवता हमारी उपासना करते हैं। फिर हम सामान्य ब्राह्मण बृहस्पतिजी से इतना क्यों डरते हैं? उनके आने पर खड़े क्यों हो जाते हैं, वे तो हमारी जीविका से पलते हैं। ऐसा सोचकर वे सिंहासन पर डटकर बैठ गये । भगवान् बृहस्पति के आने पर न तो वे स्वयं उठे, न सभासदों को उठने दिया। देवगुरु बृहस्पति जी इन्द्र का यह औद्धत्य देखकर लौट गये और कहीं एकान्त में