श्री शतरूपा जी

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शतरूपाजी मानव सर्गकी आदिमाता हैं। ये स्वायम्भुव मनुकी पत्नी थीं। मनु और शतरूपासे ही मानवसृष्टिका आरम्भ हुआ । श्रुति भी कहती है- 'ततो मनुष्या अजायन्त।' मनु और शतरूपा दोनों ही ब्रह्माजीके शरीरसे उत्पन्न हुए हैं। दक्षिण भागसे मनुका और वाम भागसे शतरूपाका प्रादुर्भाव हुआ है। बृहदारण्यक उपनिषद्मे बतलाया गया है केवल मनुष्य ही नहीं, सैकड़ों प्रकारके पशु भी इन्हीं दोनोंकी संतान हैं। शतरूपा इच्छानुसार रूप धारण करनेवाली तथा संकोचशीला स्त्री थीं। अतः प्रथम समागमके अवसरपर इन्होंने सैकड़ों रूप धारण करके अपनेको मनुकी दृष्टिसे छिपानेका प्रयत्न किया; किंतु उन सभी रूपोंमें मनुने उन्हें पहचाना और वैसा ही रूप धारण करके उनसे