भक्त पाण्डव धर्मो विवर्धति युधिष्ठिरकीर्तनेन पापं प्रणश्यति वृकोदरकीर्तनेन। शत्रुर्विनश्यति धनञ्जयकीर्तनेन माद्रीसुतौ कथयतां न भवन्ति रोगा: ॥ *जैसे शरीर में पाँच प्राण होते हैं, वैसे ही महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र हुए-कुन्तीदेवी के द्वारा धर्म, वायु तथा इन्द्र के अंश से क्रमशः युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन और माद्री के द्वारा अश्विनीकुमारों के अंश से नकुल और सहदेव। महाराज पाण्डु का इनके बचपन में ही परलोकवास हो गया। माद्री अपने पति के साथ सती हो गयीं। पाँचों पुत्रों का लालन-पालन कुन्ती देवी ने किया। ये पाँचों भाई जन्म से ही धार्मिक, सत्यवादी और न्यायी थे। ये क्षमावान्, सरल, दयालु तथा भगवान् के