गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 17

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घण्टे पर घण्टे बीत रहे थे।लेकिन पत्नी की डिलीवरी नही हुई।बाहर मैं और माँ परेशान थे।अंदर कोई जा नही सकता था।दर्द और पीड़ा से औरते कराह रही थी।लेकिन पत्नी दर्द को सहन करके पड़ी थी।जब तक चीखो चिल्लाओ मत कोई सुनने वाला नही था।और मैं और माँ पूरी रात ठंड में बाहर बरामदे में खड़े रहे।खड़े खड़े सुबह हो गयी लेकिन पत्नी की डिलीवरी की खबर नही मिली।सुबह होते ही मैं घर चला गया था।नहा धोकर तैयार होकर बाबू लालजी के घर गया था।बाबू लाल झा मझले कद के पतले दुबले शरीर के थे।उनका रंग काला था।वह मेरे से काफी