'पवित्र जीवन के बिना पवित्रतम परमात्मा को कोई नहीं प्राप्त कर सकता।’ उष:काल में पम्पासर के तटपर महर्षि मतंग अपने शिष्यों से कह रहे थे। अतः मनसा, वाचा, कर्मणा पवित्रता का पालन करो। शुचि भोजन, शुचि परिधान और अपना प्रत्येक व्यवहार पवित्र होने दो। जीव मात्र पर दया और भगवन्नाम में अनुरक्ति का सदा ध्यान रखो। तभी स्थावर-जंगम, लता-वृक्ष आदि विश्व की प्रत्येक वस्तु में उन्हें देख सकोगे। यही सच्चा धर्म है। जाति-कुल की बाधा से यह धर्म सदा मुक्त है।' महर्षि और उनके शिष्यगण चले गये थे। शबरी उनके चरण-चिह्नोंपर लोट रही थी, जैसे उसे कोई अमूल्य निधि मिल