काफी दिन चढ़ने के बाद रजत की मूर्छा टूटी । उसने देखा - गेंदा सिंह का शरीर अब भी टीले की धूल में पड़ा था । मंदिर के पट खुले हुए थे किंतु उसके अंदर रात देखे दृश्य का कोई भी चिन्ह शेष न था । एक बार फिर रजत का सिर चकरा गया ।"तो क्या वह सब स्वप्न था ? रूप कुंवर को किसने मारा ? उसकी लाश कहां गई ? और खून की वह धारा .... उफ़ ! हे भगवान ... क्या था वह सब ?" उसने दोनों हाथों से अपना सिर दबा लिया । कुछ देर बाद