मंदिर के पट - 3

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"अच्छा साहब !"गेंदा सिंह ने लंबा सलाम ठोंका और चला गया । उसके जाने के बाद रजत बैठा नहीं । उसने अपने सामान को एक ओर जमाया और साफ़ की हुई फ़र्श पर अपना बिस्तर लगा दिया । आते समय वह अपने साथ कुछ अखरोट बादाम और सूखे मेवे ले आया था । थोड़े से अखरोट जेब में डाल कर वह कमरे से बाहर निकला । द्वार अच्छी तरह बंद करके उसने एक बार पूरे खंडहर का चक्कर लगाया । कहीं कोई खास बात नजर न आयी । पुराने समय के जमींदारों के भवनों के ही समान ही यह भी