श्री नारदजी

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‘उत्सङ्गान्नारदो जज्ञे’ अर्थात् प्रजापति ब्रह्माजी की गोद से श्रीनारदजी उत्पन्न हुए। जब ब्रह्माजी ने इन्हें भी सृष्टि-विस्तार की आज्ञा दी तो श्रीनारदजी ने यह कहकर कि 'अमृत से भी अधिक प्रिय श्रीकृष्ण-सेवा छोड़कर कौन मूर्ख विषय नामक विष का भक्षण (आस्वादन) करेगा? ब्रह्माजी की आज्ञा का अनौचित्य दिखाया। श्रीनारदजी की यह बात सुनकर ब्रह्माजी रोष से आग-बबूला हो गये और नारदजी को शाप देते हुए बोले— नारद! मेरे शाप से तुम्हारे ज्ञान का लोप हो जायगा, तुम पचास कामिनियों के पति बनोगे। उस समय तुम्हारी उपबर्हण नाम से प्रसिद्धि होगी, फिर मेरे ही शाप से दासीपुत्र बनोगे, पश्चात् सन्त-भगवन्त-कृपा से