महाराज अलर्क महाराज ऋतध्वज और महारानी मदालसाके चार पुत्रों में सबसे छोटे थे। इनके अन्य ज्येष्ठ भाइयों के नाम विक्रान्त, सुबाहु और शत्रुमर्दन थे। इनकी माता महारानी मदालसा अत्यन्त विदुषी और ब्रह्मज्ञानी थीं। उन्होंने अलर्क के ज्येष्ठ भाइयों को बचपन से ही ब्रह्मज्ञान की शिक्षा दी, जिससे वे लोग ब्रह्मज्ञानी होकर जीवन्मुक्त हो गये। राजा के कहने पर उन्होंने अलर्क को ब्रह्मज्ञान न देकर क्षत्रियोचित कर्तव्य का ज्ञान कराया। वे बचपन में ही अलर्क को लोरी के माध्यम से राजा का कर्तव्य बताते हुए कहतींराज्यं कुर्वन् सुहृदो नन्दयेथाः साधून् रक्षंस्तात यज्ञैर्यजेथाः । दुष्टान् निघ्नन् वैरिणश्चाजिमध्ये गोविप्रार्थे वत्स मृत्युं व्रजेथाः ॥अर्थात्