असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 20

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निर्वाण की समझपूरा जीवन समाज जागृति और धर्म प्रचार का कार्य करने के पश्चात, कई ग्रंथों का समाज को उपहार देते-देते, आयु अनुसार समर्थ रामदास की काया थक चुकी थी। उन्हें ज्ञात हो चुका था कि अब कुछ समय पश्चात इस काया को त्यागने का क्षण आनेवाला है।जीवन का संध्या समय नामजप के साथ, विश्राम करते हुए बिताने के लिए उन्होंने सज्जनगढ़ को चुना। प्राचीन समय में आश्वलायन ऋषि का यहाँ निवास था इसलिए उसे आश्वलायन गढ़ कहा जाता था। हस्तांतरित होते-होते उसके नाम भी बदलते गए। शिवाजी महाराज ने इसे आदिलशाह से जीत लिया तब वहाँ काफी भालू पाए