जिंदगी के रंग हजार - 7

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और पहली ड्यूटी इसी खिड़की की मिलीथी।परेशानी आयी।उन दिनों लकड़की की ट्यूब होती थी।इसमें कार्ड टिकट की साइज के खांचे होते थे।जिसमें टिकट भरने पड़ते थे।हर स्टेशन का एक खाँचा और चाइल्ड टिकट का अलगऔऱ जिन मेहताजी को लोग गुस्से वाला कहते या उनसे डरते थे।वह वैसे नही थे।मैं उनके करीब आने लगा।कैसेसर्विस में काम का बड़ा महत्त्व होता है।और हर इंचार्ज अपने उस सहायक को पसन्द करता है जो काम करे और ओबीडेन्ट होबुकिंग ऑफिस में उन दिनों बहुत काम होता था।आजकल कम्प्यूटर न बहुत कुछ आसान कर दिया है।जैसा मैंने कहा उन दिनों कार्ड टिकट का जमाना था।साल