यह कहानी है, मेरे भाई रावण की, जो एक अत्यंत पराक्रमी और अद्भुत राक्षससम्राट था। वेदो में वो प्रवीण था| रावण को जब भगवान शिव मिले थे, तब उसके मुख से एक गीत निकला पडा था, जिसमें भगवान शिव की शक्तियों की अद्भुतता का वर्णन उसने किया था। मेरा भाई रावण बहूत प्रतिभाशाली था| भगवान शिवने उसकी इस प्रतिभापर खुश हो के उसे कई सारी शक्तियाँ प्रदान की थी| जटाटवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥ हम भगवान ब्रह्माजीके ही वंशज थे| ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे महर्षि पुलस्त्य| महर्षि पुलस्त्य