दीदी को हम सब नीरू दीदी के नाम से बुलाते थे। निरुपमा तो सिर्फ पिताजी ही उनको कहा करते थे।वे कहते थे की बड़ा सकून है इस नाम में। दीदी भी एसी ही थी अपने नाम जैसी सकून दार। सबका खयाल रखने वाली,अम्मा के लिए सुबह की चाय दीदी ही बनाती थी।और अम्मा रोज़ चाय की प्याली हाथ में लेते हुए कहती "नीरू मेरी आदत मत बिगाड़,जब तू ससुराल चली जाएगी तो मेरा क्या हाल होगा" और दीदी हंसते हुए कहती की अम्मा मुझे कहीं पड़ोस में ही ब्याह देना, फिर में उम्रभर तुम्हारा और पिताजी का खयाल रख लूंगी।