असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 14

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जामगाँव से पुनः प्रस्थान :लगभग चार माह बीत गए। अब जामगाँव के युवाओं में नया चैतन्य भर गया था। वे अपने धर्म और समाज की रक्षा में सक्षम और तत्पर हो रहे थे। उन्हें किसी बाहरी मदद की आवश्यकता नहीं थी। अपना उद्देश्य सफल हुआ देख, समर्थ रामदास ने वहाँ से प्रस्थान करने का निर्णय लिया। क्योंकि देश में और भी कई स्थान थे, जहाँ लोगों को जगाने की, प्रेरित करने की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने प्रस्थान की बात माँ को सुनाई तो मानो उन पर पहाड़ ही टूट पड़ा। पुत्रवियोग में सारा जीवन बीता था । नारायण के रूप