श्रीजाम्बवान् जी

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ऋक्षराज जाम्बवान् ब्रह्मा के अंशावतार हैं। एक रूप से सृष्टि करते-करते ही दूसरे रूपसे भगवान्‌की आराधना, सेवा एवं सहायता की जा सके, इसी भाव से वे जाम्बवान्के रूपमें अवतीर्ण हुए थे। ऋक्ष के रूपमें अवतीर्ण होनेका कारण यह था कि उन्होंने रावणको वर दे दिया था कि उसकी मृत्यु नर-वानर आदिके अतिरिक्त किसी देव आदिसे न हो। अब इसी रूपमें रहकर रामजीकी सहायता पहुँचायी जा सकती थी। जब भगवान् विष्णुने वामनका अवतार धारणकर बलिकी यज्ञशालामें गमन किया और संकल्प लेनेके बाद अपना विराट् रूप प्रकट किया तब इन्होंने उनके त्रिलोकीको नापते-नापते इनकी सात प्रदक्षिणा कर लीं। इनकी इस अपूर्व शक्ति