एक योगी की आत्मकथा - 40

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मेरा भारत लौटनाअत्यंत आनन्द के साथ मैं भारत की पवित्र हवा में फिर एक बार श्वास ले रहा था । हमारा जहाज “राजपूताना” २२ अगस्त १९३५ को मुंबई के विशाल बन्दरगाह में आकर खड़ा हो गया। जहाज से उतरते ही, पहले ही दिन, आगे आने वाला वर्ष किस प्रकार मुझे अनवरत रूप से व्यस्त रखने वाला है, इसका स्वाद मुझे मिल गया । बन्दरगाह पर मित्र गण फूलमाला लिये स्वागत के लिये खड़े थे। शीघ्र ही ताजमहल होटल के मेरे कक्ष में प्रेस-संवाददाताओं और फोटोग्राफरों का ताँता लग गया।मुम्बई शहर मेरे लिये नया था। मुझे यह शहर आधुनिक उत्साहपूर्ण वातावरण