छू लो आसमान

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रागिनी के बारहवीं के एग्जाम हो चुके थे।अब इंतजार था तो परिक्षा फल का। घर मे दादा दादी, माँ पिता जी, चाचा लोग, सब की इच्छा थी कि अबकी रागिनी के हाथ पीले कर दिए जाए। रागिनी आगे पढ़ना चाहती थी, कुछ करना चाहती थी ताकि जीवन को उद्देश्य और माता पिता को गर्व और सम्मान मिले। किन्तु अपने मन की व्यथा वो किसी से व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह अभी शादी नहीं करना चाहती थी। रिश्ते देखे जा रहे थे, कहीं लड़का नहीं जंचता था, तो कहीं कुल का तालमेल नहीं मिल रहा था। खैर दिन बीतते