मायके में बेटी से अक्सर ये कहतें सुना गया है कि पराए घर जाना है,जरा ढंग से रहा करो, ससुराल आती है तो उसे सबसे सुना पड़ता है कि पराये घर से आयी है,ढंग में रहा करो ।आज तक मैं ये नहीं समझ पायी कि दोनों घर में पाया जाने वाला वो ढंग कौन सा है ।शादी से पहले हम मायके में परायी बना दी जाती हैंl और ससुराल पहुंचकर हम फिर से परायी ही कहलाती हैं। जरा कोई ये तो बताये कि पूरी जिंदगी मायके और ससुराल के नाम लिखने वाली उस बेटी का अपना घर आखिर है कौन सा?मायके में