सब कुछ पैसा ही नहीँ

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यह कहानी है वर्ष 1940 के आसपास की। सुल्तानपुर में भीटहा पंडित नाम से पंडितों का एक नामी गिरामी गाँव था। गाँव में कुछ अत्यंत ही प्रतिष्ठित परिवार बसे थे। लेकिन पढाई- लिखाई में उनकी रूचि कम ही थी। उनके पास खेती - बारी चूंकि पर्याप्त थी इसलिए अभिभावक भी बच्चों की पढ़ाई के प्रति बहुत ज्यादा संजीदा नहीं रहते थे।लेकिन पंडित हरिचंद का मिज़ाज कुछ अलग था।वे खुद किसी तरह खुद ग्रेजुएट कर लिए थे और चाहते थे कि उनके बेटे भी उंची पढाई करके नौकरी- चाकरी करें।गाँव से स्कूल लगभग आठ किलोमीटर था और बीच में नदी भी