(भाग 18) रघुनाथ खुद को जकड़ा हुआ सा महसूस कर रहा था। वह शोभना से बहुत कुछ बोलना चाहता है लेक़िन कुछ भी कह नहीं पाता है। उसका अपना ही शरीर किसी और शक्ति द्वारा संचालित हो रहा था। अपने मस्तिष्क पर ज़ोर देने पर अचानक ही जैसे उस शक्ति का रघुनाथ के शरीर से नियंत्रण हट गया। रघुनाथ किसी कैद से रिहा हुआ कैदी सा ख़ुद को स्वतंत्र महसूस करते हुए झट से अपनी पत्नी से बोला - "शोभना यहाँ से चली जाओ। बच्चों को लेकर कही दूर चली जाना। यहाँ तुम्हारा रुकना खतरे से खाली से नहीं है।