अन्धायुग और नारी--भाग(२९)

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फिर वो नीचे उतरकर आई और उसने अपनी जूती पैर में पहनी,मैंने तब उसे नज़दीक से देखा,वो वाकई बहुत ही खूबसूरत थी,धानी रंग का सलवार कमीज,लाल दुपट्टा,लम्बी चोटी,कानों में सोने की बालियाँ,माथे से आती गाल को छूती उसकी लट,कजरारी बड़ी बड़ी आँखें,पतली सी नाक और बिना सुर्खी के लाल गुलाब की पंखुड़ी के समान होंठ,एक पल को उसे देखकर मैं अपनी सुधबुध भूल गया,मैं बेखबर सा उसे निहार रहा था और उसे मेरा यूँ उसको निहारना पसंद नहीं आया तो वो बोली.... "जनाब! कहाँ खो गए"? "जी! कहीं नहीं",मैंने कहा.... "तो फिर अब आप अपने रास्ते जाइए",वो बोली... "जी! मैं