ओजस्वी को दुखी देखकर नारायन को बिलकुल अच्छा नहीं लगा और वो बिना किसी को बताएं जीप उठाकर हवेली की ओर चला गया और इधर शान्तिनिकेतन में ओजस्वी के साध्वी बनने का अनुष्ठान चलने लगा,कोढ़ियों के आश्रम के गुरूजी की देख रेख में ये कार्य हो रहा था,ओजस्वी सफेद सूती साड़ी धारणकर, माथे पर चन्दन लगा और गले में तुलसी की माला पहनकर वो हवनकुण्ड के पास जा बैठी,वो अब इस सांसारिक माया मोह से मुक्ति पाना चाहती थी,जिसे उसने सबसे ज्यादा चाहा था उसी ने उसे धोखा देकर उसकी छोटी बहन को अपना लिया था,ये बात ओजस्वी के हृदय