गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 15

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मै शादी के लिए एक महीने की छुट्टी लेकर गया था और पता ही नही चला कब एक महीना गुजर गया।उन दिनों टेलीफोन थे लेकिन हर घर मे नही।और मोबाइल तो हमारे देश मे था ही नही।बस डाक का ही सहारा था।मैं जाने से एक दो दिन पहले बोला पत्र लिखती रहना।और सुनोक्यापत्र पुरानी औरतों की तरह मत लिखनामतलब"मेरे प्राण प्यारे,पति परमेश्वर ऐसे मत लिखना"तो"पढ़ी लिखी हो।पति पत्नी बराबर होते है।मेरा नाम लिखनाउसने ऐसा तो नही किया और पत्र की शुरुआत प्रिय से करती थी।उन दिनों बांदीकुई से आगरा के लिए सिर्फ 3 ट्रेन ही चलती थी।एक सुबह,एक दोपहर में