एक योगी की आत्मकथा - 37

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मेरा अमेरिका-गमन“अमेरिका! निश्चय ही ये लोग अमेरिकी हैं!” मेरे मन में यही विचार उठा जब मेरी अंतर्दृष्टि के सामने से पाश्चात्य चेहरों की लम्बी कतार गुज़रने लगी।राँची में अपने विद्यालय के भंडार गृह में कुछ धूलि धूसरित पेटियों के पीछे मैं ध्यानमग्न बैठा था। बच्चों के बीच व्यस्तता के उन वर्षों में एकान्त स्थान मिलना बहुत कठिन था !ध्यान में वह दृश्य चलता रहा। एक विशाल जनसमूह मेरी ओर आतुर दृष्टि से देखते हुए मेरी चेतना के मंच पर अभिनेताओं की तरह मेरे सामने से गुज़र रहा था।इतने में भंडार गृह का द्वार खुल गया । सदा की तरह एक