प्रोफेसर! तबियत आज कुछ ठीक नहीं थी सुबह से, लेकिन किसी से कहा नहीं, परेशान हो जाते सब। लेकिन आपको नहीं बताती तो मैं परेशान रहती। वहां नहीं बताया, डांट ना पड़े इसलिए यहाँ बता रही। जब तक चिट्ठी मिलेगी तब तक मैं भली चंगी सी हो जाउंगी। ना ना घबराने जैसी बीमारी नहीं है, फिलहाल नहीं। आज दूसरी बार ऐसा हुआ, पहली बार उस रात की अगली सुबह हुआ था। आज दूसरी मर्तबा हुआ, मैं अपना नाम भूल गयी। कितना कुछ झेलते, बर्दाश्त करने के कारण, दिमाग़ ने खुद की पहचान ही भूलना बेहतर समझ लिया है शायद। ये