वो रात कुछ और थी - 2

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बर्फ की सिल्ली जैसी वर्तिका एक दम ठंडी पड़ती जा रही थी , चेहरा डर के मारे सफ़ेद सा होता जा रहा था। आंटी की पिस्तौल की नली एक बार और थोड़े दबाव के साथ वर्तिका को अपनी कमर पे दबती महसूस हुई, जिस वजह से वर्तिका के हाँथ ना चाहते हुए भी पर्स के अंदर रक्खे हुए उस गोल्ड पाउच पर चले गए। " जल्दी कर लड़की, ज़िंदा रहना है या गोली चलाऊं मैं!" आंटी दबी ज़ुबान से मुस्कुराते हुए बोली। वर्तिका ने वो पाउच निकाला और कापते हांथो से आंटी को पकड़ा दिया। बन्दूक की नली का दबाव