तिराहा

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बरसात का दिन था हल्की-हल्की बौछारे बालकनी से अन्दर आ रही थी। अचानक सीमा कंधे पर हाथ रखती है ; रानू के साथ घुमने जा रही हूँ , तुम भी साथ चल रहे हो ?या हम ही। अभी बारिश ही कहा रुकी है जो घूमने जाओगी , मैंने बोलते बोलते देखा बारिश कब की रुक चुकी थी। कहाँ खोये रहते हो ? तुम्हे हमारा ख्याल भी है ? शायद नही , कहकर सीमा चली जाती है । मेरे इस खोयेपन से वो तब से वाकिफ है जब रानू उसके गर्भ में आया ही था ; कैसे भूल सकता हूँ वो