अन्धायुग और नारी--भाग(२४)

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गरदन पर हँसिऐ का वार होते ही चाचाजी धरती पर गिरकर तड़पने लगे और चाची के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ते ही वें बेजान हो गए,उन्होंने अपने आखिरी वक्त में चाची से माँफी माँगी,उनका शरीर अब शिथिल पड़ चुका था,चाची पत्थर बनी उनके पास बैठीं थी, उनकी आँखों में ना उनके लिए आँसू थे और ना ही मन में कोई पछतावा,वें बस उन्हें एकटक देखें जा रहीं थीं जैसे कि कह रहीं हों कि तुम ऐसा अपराध ना करते तो मैं तुम्हारी जान ना लेती,मैं अब उनके पास पहुँच चुका था और वहाँ का नजारा देखकर मेरा दिल दहल गया......