उन तीनों को दादी ने हवेली में रहने की इजाज़त दे तो दी लेकिन भीतर ही भीतर वें दादाजी और चाचाजी से डर भी रहीं थीं,लेकिन उनकी अन्तरात्मा कह रही थी कि उन्हें उन तीनों की मदद जरूर करनी चाहिए इसलिए उस वक्त उन्होंने अपने दिल की आवाज़ सुनी.... और उधर जो लठैत तुलसीदास और किशोरी का पीछा करते हुए भगवन्तपुरा तक जा पहुँचा था,वो भी अब वहाँ से लौट आया था और फिर वो सीधा चाचाजी के पास पहुँचकर उनसे बोला.... "सरकार! उस हरामखोर वकील को भगवन्तपुरा वाले मकान से छुड़वा लिया गया है", "छुड़ा लिया गया है,मतलब क्या