अन्धायुग और नारी--भाग(६)

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उस रात देवदासी तुलसीलता ने मंदिर में नृत्य किया और उसके बाद वो अपनी कोठरी में जाकर आराम करने लगी,तभी आधी रात के समय किसी ने उसकी कोठरी के द्वार की साँकल खड़काई,तुलसीलता ने भीतर से ही पूछा.... "कौन...कौन है"? तभी बाहर से आवाज़ आई... "मैं हूँ तुलसीलता,किवाड़ खोलो,देखो कोई तुमसे मिलने आया है", "अच्छा! पूरन काका! आप! जरा ठहरिए! मैं अभी किवाड़ खोलती हूँ", और ऐसा कहकर तुलसीलता ने अपनी कोठरी के किवाड़ खोल दिए,पूरन काका जो कि पुजारी जी के यहाँ नौकर थे वें तुलसीलता से बोले... "तुम्हें अभी इसी वक्त हवेली जाना होगा,ठाकुर साहब ने तुम्हें बुलवाया