वो अपनी सखियों संग नृत्य करने मंदिर के मंच पर आई और मैं उसकी खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया,फिर उसने जब नृत्य करना प्रारम्भ किया तो वहाँ उसे देखने वाले जितने भी पुरूष थे वें अपनी पलकें ना झपका सकें,चूँकि उस जमाने में घर की स्त्रियाँ को इन सब समारोह में शामिल नहीं किया जाता था, स्त्रियों के लिए ऐसी जगहें ठीक नहीं मानी जातीं थीं,ऐसी जगह केवल पुरूषों की अय्याशियों का ही अड्डा होतीं थीं,क्योंकि पुरुष यहाँ आकर अपनी मनमानियांँ कर सकते थे और जब कोई रोकने टोकने वाला ना हो तो पुरूष स्वतन्त्र होकर अपने भावों का