रामदुलारी की तेरहवीं

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आकाश में काले बादल घुमड़ रहे थे ।किसी भी क्षण वर्षा हो सकती थी ।वर्षा की संभावना से मनुष्योंका समूह- “राम नाम सत्य है “ की गुहार लगाता जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता शमशान की ओर जा रहा था।आकाश में बिजली कड़की और उसी क्षण पानी की बौछार का एक झोंका आया और अर्थी को सहलागया।वायु का वेग भी बढ़ गया था ।किंतु वायु की तेज़ी से बादलों का घनापन छँटने लगा था और इसी केसाथ बूँदें थम गई थी ।अचानक देवी प्रसाद को आभास हुआ कि जैसे अर्थी में कुछ हिला हो।अपने मनका भ्रम जानकर उसने अर्थी को दिए जा रहे