अब चन्द्रकला देवी राजमहल वापस आ गईं थीं और जब उनकी भेंट गिरिराज से हुई तो वें उससे बोलीं.... "पुत्र! ये तुमने ठीक नहीं किया,तुमने तो धंसिका से प्रेमविवाह किया था,तब भी तुमने उसे स्वयं से दूर कर दिया,बिना पुत्रवधू के ये राजमहल सूना है,वो यहाँ की रानी है और अपनी रानी के बिना एक राजा सदैव अपूर्ण रहता है" "तो क्या इसमें मेरा दोष है,वो स्वयं यहाँ से गई है,मैंने नहीं कहा था उसे यहाँ से जाने के लिए",गिरिराज बोला.... "दोष किसी का भी वो पुत्र! किन्तु इसमें हानि सम्पूर्ण राज्य की है,वो तुम्हारी अर्धान्गनी है, विवाह के समय