मृत शिशुकन्या की बात सुनकर धंसिका स्वयं को सम्भाल ना पाई और फूट फूटकर रो पड़ी,वो रोते हुए गिरिराज से बोली.... "स्वामी! ऐसा क्या अपराध हुआ था मुझसे ,जो ईश्वर ने मुझे उसका ऐसा दण्ड दिया,मैंने अपनी आने वाली सन्तान के लिए क्या क्या स्वप्न संजोए थे,वो सब धरे के धरे रह गए,जब माता कुलदेवी के दर्शन करके लौटेगी तो मैं क्या उत्तर दूँगीं उन्हें,हे! ईश्वर! जब आपको मेरी सन्तान लेनी ही थी तो दी ही क्यों थी,आपकी पूजा अर्चना में मुझसे क्या कमी रह गई थी जो आपने मुझसे मेरी सन्तान छीन ली", "शान्त हो जाओ धंसिका! कदाचित ये