कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५८)

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अब गिरिराज के मस्तिष्क में कौन सा षणयन्त्र चल रहा था,ये रुपश्री को ज्ञात नहीं था,उधर गिरिराज धंसिका से भी अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहा था और इधर रुपश्री से भी वो अपना झूठा प्रेम जताता रहता था, एक दिवस रुपश्री गिरिराज से बोली.... "गिरिराज! अब तो तुम स्वतन्त्र हो चुके हो तो अपनी माता से कह दो कि तुम उस इत्र विक्रेता की कन्या से विवाह नहीं करना चाहते", "किन्तु रानी रुपश्री! मैं अभी उनसे ये सब नहीं कह सकता",गिरिराज बोला.... "किन्तु क्यों गिरिराज! क्या तुम मुझसे प्रेम नहीं करते",रानी रुपश्री ने पूछा.... "मैं आपसे अत्यधिक प्रेम करता हूँ