जीवन @ शटडाऊन - 17

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एपीसोड --3 अपने चेहरे पर उनकी ठहरी हुई वीभत्स आँखों के भय ने मेरी एक-एक शिरा झनझनाकर रख दिया । मैंने अपनी आँखें तुरन्त झुका लीं । वह कभी सिर पटकती, कभी हाथ-पैर । सोलह वर्ष पहले भी मामी भरतपुर में ऐसे ही मूँज की चारपाई पर पड़ी छटपटा रही थीं। कभी सिर झटकतीं, कभी हाथ पटकतीं । तब भी उनके काले, घुँघराले बाल छिटककर ऐसे ही तकिए पर फैले हुए थे । ऐसे ही उनकी नाक की लौंग सिर के झटकने से कभी इधर, कभी उधर होती चमक उठती थी । वह चिल्ला रही थीं, “जिया ऽ ऽ ऽ...।”