लाल किले के प्राचीर से

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 लाल किले के प्राचीर से       लाल किले के प्राचीर से इस बार भी सपने दिखाए गए । जनता को लुभाने के लिए नये-नये सपने बुने गए। लोगों की आँखों में सपने तैरे और फिर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच आने वाले वर्षों में सत्ता पर जमे रहने का  भरोसा मिल गया। उद्बोधक स्वयं अपने लिए सपने बुन रहा था। पूरे एक हजार साल राज करने के सपने। जन गण भले ही मन ही मन हँस रहा हो पर उद्बोधक के मन में लड्डू फूट रहे थे। सुनहरे सपने दिखाने और देखने में किसी को क्या एतराज  हो सकता है।