चिराग का ज़हर - 8

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(8) "जी नहीं-दिन में भी हो आया करती हैं-" फिरोजा ने कहा। हमीद ने विनोद की ओर देखा और विनोद अचानक उठ गया और शापूर में बोला । मेरे कारण अगर तुम लोगों को कोई कष्ट हुआ होता क्षमा करना और यदि तुम लोगों को कोई आवश्यकता पड़े तो मुझसे बिना यो झिझिक के सम्बन्ध स्थापित करना।” शापुर किसी चिन्ता में डूबा हुआ था। न उसने कुछ कहा और न विनोद को विदा करने के लिये उठा- फिरोजा अवश्य उठ गई थी । हमीद ने जानबूझ कर अपनी गति सुस्त कर दी थी— इस प्रकार जब विनोद अपनी लिंकन तक