चिराग का ज़हर - 4

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(4) "श्री मान जी !" युवक ने दयनीय स्वर में कहा "केवल इतनी सी अभिलाषा है कि आप अपनी कार में मुझे स्थान दे दें―" "क्यों स्थान दे दूँ – यह मेरी अपनी गाड़ी है—टेक्सी नहीं है- समझे - चलो मरो―" हमीद ने कहा और उसे खींचता हुआ गाड़ी तक लाया-- फिर दरवाजा खोल कर उसे अगली ही सीट पर ढकेल दिया और खुद दूसरी ओर के दरवाजे से अन्दर दाखिल होकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट कर दी। साथ ही साथ वह बड़बड़ाता भी जा रहा था। " जिसे देखिये उस पर आजकल नैतिक्ता का भूत