भगवान् शंकर भगवती सती के साथ कैलास के एक उत्तम शृङ्ग पर विराजमान थे। वट की घनी छायामे उनके कपूर के समान धवल शरीर पर भूरे रंग की जटाएँ बिखरी हुई थीं। हाथमें रुद्राक्ष की माला, गले में सांप और सामने ही नन्दी बैठे हुए थे। उनके सहचर अनुचर वहा से कुछ दूर परस्पर अनेकों प्रकार की क्रीडाएँ कर रहे थे। उनके सिर पर चन्द्रमा और गंगा की अमृतमय धारा रहने के कारण तीसरे नेत्र की विषम ज्वाला शान्त थी। ललाट का भस्म बड़ा ही सुहावना मालूम पड़ना था।एकाएक 'राम-राम' कहते हुए उन्होंने अपनी समाधि भंग की। माता सती ने