सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 6

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शुभ कर्म में बाधा डालने वालेइस प्रकार जब तुकाराम आत्म शुद्धि और आंतरिक शांति के लिए हरिकीर्तन करने लगे और जनता को भगवद्-भक्ति का उपदेश देना आरंभ किया तो अनेक लोग उनके पास आकर तरह-तरह के तर्क-कुतर्क करने लगे वे तरह-तरह के सिद्धांत उपस्थित करके उनसे वाद-विवाद करने लगते। तरह-तरह की शंकाएँ उठाते इस पर उन्होंने कहा–“मैं किस आधार पर विचार करूँ? मेरे चित्त को कौन धीरज बँधायेगा? संतों के आदेशानुसार मैं भगवान् के गुण गाता हूँ–सेवा धर्म पर चलता हूँ। मैं शास्त्रवेत्ता नहीं हूँ, वेदवेत्ता नहीं हूँ, सामान्य क्षुद्र जीव हूँ। पर लोग आकर मुझे तंग करते हैं, मुझ