पालकी के अन्दर बैठी कामायोगिनी कुछ क्षणों तक कुँवर को निहार मुस्कुरायी , फिर गंभीर होकर बोलीं , ' चित्त को शांत कर मेरी बातें एकाग्र होकर सुनो वत्स ! प्राणी का जीवन और उसकी चेतना शरीर में श्वास द्वारा निरंतर प्रवाहित होने वाली वायु पर ही अवलम्बित है । ' ' चेतना ही तो जीवन है ... इन दोनों को पृथक क्यों कर रही हैं , देवि ? ' ' नहीं वत्स ! अचेत प्राणी क्या जीवित नहीं होता ? दोनों की सत्ता पृथक् है । चेतना का प्रत्यक्ष सम्बंध चेतन मस्तिष्क से है । ' ' चेतन मस्तिष्क