कुछ देर बाद आखिरी रेलगाड़ी गुजर गई और स्टेशन मास्टर साहब कृष्णराय निगम जी के साथ उनके घर की ओर चल पड़े,अँधेरी रात और सुनसान सा रास्ता लेकिन रेलवें काँलोनी स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए दोनों ही जल्दी घर पहुँच गए.... दोनों घर पहुँचे तब घड़ी में सुबह के चार बज चुके थें,स्टेशन मास्टर साहब ने घर का गेट खोला और लाँन को पार करके घर के मेन दरवाजे के पास आएं जो लकड़ी का बना हुआ था,उन्होंने वहाँ आवाज़ लगाई.... रामजानकी....ओ....रामजानकी...दरवाजा खोलो...भाग्यवान!! आती...हू्ँ....आती...हूँ,सुन लिया मैनें ,बहरी नहीं हुई हूँ और फिर इतना बड़बड़ाते हुए रामजानकी ने दरवाजा