दलदल से बाहर

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दलदल से बाहर...   (डॉ.भावना शुक्ल ) ===============  आज मन बहुत प्रफुल्लित हो रहा था गर्मी की छुट्टी बिताने के बाद अपने घर जा रहे थे अब  प्रतीक्षा समाप्त हो रही थी जल्दी ही परिवार से मिलेंगे . और अभी हम लोग जबलपुर स्टेशन पर हम ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। आज ट्रेन बहुत लेट होती जा रही थी। तभी मेरी नजर एक महिला पर पड़ी कुछ लोग उसे पुष्पगुच्छ दे रहे, माला पहना रहे हैं। उन्हें देख लग रहा जैसे बहुत ही सम्मानित व्यक्तित्व है। एक सज्जन ने कहा... "मैंम दिल्ली पहुंच कर अगले प्रोग्राम के विषय में बताइएगा।"