समाज सुधारक - श्रीभाईजीसमयके प्रवाहके साथ ही हमारे समाजकी बहुत-सी प्रथाओंमें बुराइयाँ आ गई थी। भाईजीका ध्यान इस ओर युवावस्थासे ही था. बम्बई जीवनमें अग्रवाल महासभाके सक्रिय सदस्य रहकर उन्होंने प्रचलित बुराइयोंको हटानेका पूरा प्रयास किया। 'कल्याण यद्यपि पूर्ण तथा आध्यात्मिक पत्र था पर फिर भी समय-समयपर भाईजीने 'कल्याण' के माध्यमसे एवं सत्संगों में अपने प्रवचनों के माध्यमसे ऐसी कुप्रथाओंको रोकनेके लिये पूरी चेष्टा की। जिस दहेजकी प्रथाने आज हमारे समाजको त्रस्त कर रखा है उसको भाईजीने अपनी दूरदर्शी दृष्टिसे पचास साल पहले ही देखा था। कल्याण के जून 1955 अंकमें उन्होंने लिखा– “...दहेज लेना बहुता बड़ा पाप है। 'कल्याण'