एक शाम मैं कुछ लोगों के साथ बैठा था जो एक कार्यक्रम के बाद रुक गए थे। मुझे याद आता है कि वह कोई ध्यान का सत्र था। वे सब लोग मेरे इस कार्यक्रम में दूसरी या तीसरी बार आए थे और भारत के बारे में, मेरे विचारों के बारे में जानने या मेरे साथ सिर्फ कुछ वक्त बिताने के लिए बहुत उत्सुक थे। इसलिए मैंने ही उन्हें कुछ देर बातचीत करने के लिए रोक लिया था। जिस केंद्र में यह सत्र आयोजित किया गया था वह मेरे आयोजक के घर, जहां मैं रुका हुआ था, से लगा हुआ ही