मैं पापन ऐसी जली--भाग(३८)

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शास्त्री जी तो पाण्डेय जी के जाने का ही इन्तज़ार कर रहे थे और जैसे ही वो घर से निकले तो उन्होंने सरगम से कहा... "बिटिया! ये तुमने क्या किया?,मैं तो चाहता हूँ कि तुम इस घर की बहू बनो,लेकिन तुमने तो सारा मामला ही बिगाड़ कर रख दिया,राधेश्याम के बारें में भी तो कुछ सोचा होता", "बाबा! मैं ने उन्हीं के बारें में सोचकर ऐसा किया",सरगम बोली... "ठीक है बाकीं बातें बाद में करते हैं,पहले मैं मंदिर हो आता हूँ", और ऐसा कहकर शास्त्री जी स्नान करके मंदिर चले गए,इसी बीच राधेश्याम पाण्डेय जी को रेलवें स्टेशन छोड़कर घर