मैं पापन ऐसी जली--भाग(३)

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कुलभूषण त्रिपाठी जी के अन्तिम संस्कार के बाद सदानन्द जी ने एक भाई की तरह अपनी मुँहबोली सुभागी और उसके तीनों बच्चों की जिम्मेदारियों को लेना शुरु कर दिया,अब सुभागी और सरगम को भी पता था कि अब सरगम मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाएगी क्योंकि उसकी पढ़ाई के लिए खर्चा कहाँ से आएगा और उन्होंने संकोचवश ये बात सदानन्द बाबू से भी नहीं बताई,इसलिए सदानन्द बाबू ने कस्बें के काँलेज में ही बी.एस.सी. में सरगम का एडमिशन करा दिया और सुभागी को कुछ रूपये देकर वापस दिल्ली रवाना हो गए और जाते जाते सुभागी से ये कहकर गए... सुभागी